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कक्षा 6 हिंदी पाठ 3 भिड़ंत पाठ का प्रश्नोत्तर

कक्षा 6 हिंदी पाठ 3 'भिड़ंत' पाठ का प्रश्नोत्तर 

शब्दार्थ:-

बिकाय -बिकता है 

नदारद - किसी जगह पर नहीं होना; गायब 

टपक - बूँद-बूँद गिरना 

संकरा- संकीर्ण 

पराक्रमी - पुरुषार्थी; वीर 

विनयशील- नम्र; सुशील 

प्रत्यंचा -धनुष की डोरी 

मदारी - तमाशा दिखाने वाला 

उस्ताद - गुरु; जानकार 

कोसना- भला बुरा कहना 

मक्कारी- कपट; धोखा 

बखान - वर्णन 

क्षमाशील- क्षमा करने वाला 

आचरण - चाल चलन 

वाकया- घटना

उत्तर लिखें

1) मदारी ने कैसे समझ लिया कि बंदर ने केले खाए हैं?

उत्तर- मदारी को पता था कि बंदर कभी भी छिलका नहीं खाता है। इसी तथ्य से उसने समझ लिया कि बंदर ने केले खाए हैं।

2) पंडित बुद्धिनाथ के पढ़ाने का ढंग अनूठा था। क्या आप इस विचार से सहमत हैं ? अपने उत्तर का कारण भी लिखिए।

उत्तर- पंडित बुद्धिनाथ के पढ़ने का ढंग अनूठा था। वह वर्षों से एक ही पद्धति से पुरानी कहानियाँ पढ़ाते आ रहे थे। उनसे सिर्फ हाँ में हाँ मिलवाते थे। मैं इस विचार से सहमत नहीं हूँ। आजकल विज्ञान का जमाना है। शिक्षा ज्ञानवर्धक तरीके से प्रदान की जानी चाहिए। बच्चों को अपने विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता देनी चाहिए।

3) कोशल नरेश जिस रास्ते से जा रहे थे, उसी रास्ते से काशी नरेश आ रहे थे। उन दोनों के बीच कौन -सी समस्या उत्पन्न हो गई?

उत्तर- दोनों के सारथी एक ही सँकरे रास्ते से आ रहे थे। दोनों के पार होने की समस्या उत्पन्न हो गई। दोनों के साथी अपने -अपने राजा को महान बताने की होड़ में लगे थे। कोई भी वापस जाना नहीं चाहता था। इसमें दोनों के प्रतिष्ठा का प्रश्न था।

4) कोशल नरेश ने अपना रथ पीछे क्यों कर लिया?

उत्तर- कोशल नरेश ने अपनी सारथी के प्रश्न उत्तर को सुना। उन्होंने काशी नरेश के सत्यवान, क्षमाशील और विनयशीलता जैसे गुणों को सुना और गुना। लेकिन वे महानता को वाणी से नहीं बल्कि आचरण के माध्यम से प्रकट करना चाहते थे ।इसलिए वे अपना रथ पीछे कर लिया।

5) गणेश का तर्क सुनकर हेड मास्टर साहब क्यों प्रसन्न हुए?

उत्तर- गणेश का तर्क सुनकर हेड मास्टर साहब प्रसन्न हुए क्योंकि गणेश लकीर के फकीर की तरह सुनी - सुनाई कहानी पर विश्वास करने वाला नहीं था। वह अपना दिमाग लगाकर कौतूहल का उत्तर जानना चाहता था। उसमें जानने की जिज्ञासा थी।

6) बुद्धि न हाट बिकाय, बुद्धि न चोर चुराए, इसका भाव स्पष्ट करें।

उत्तर- उपरोक्त पंक्ति का भाव यह है कि बुद्धि एक ऐसी पूंजी है, जिसे किसी बाजार या हाट में बेचा नहीं जा सकता और न ही कोई चुरा या बाँट सकता है। यह खर्च करने पर बढ़ती है। बुद्धि जिसके पास है वही बलशाली है।






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