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Class 7 Hindi Path 1 Chahta Hun JCERT Notes

 Class 7 Hindi Path 1 Chahta Hun 

JCERT Notes

"चाहता हूँ"

1) इन शब्दों के अर्थ लिखिए-

समर्पित = समर्पण किया हुआ,

स्वीकार = मान लेना, 

निवेदन = प्रार्थना ,

बंधन = रुकावट ,

सुमन = फूल,

धरती = पृथ्वी ,

आशीर्वाद = आशीष, 

भाल = मस्तक

 ऋण = उधार ,

अकिंचन = निर्धन, 

ध्वज = झंडा ,

तृण = तिनका,

नीड़ = घोंसला, 

अर्पित = अर्पण ,

घनेरी = घनी,

 स्वप्न = सपना,

कक्षा सप्तम हिंदी प्रथम पाठ चाहता हूं, चाहता हूं पाठ का प्रश्न उत्तर, चाहता हूं कविता का भावार्थ, क्लास 7 हिंदी नोट्स पाठ 1,


2) इन छंदों के अर्थ स्पष्ट करें-

क) मन समर्पित, तन समर्पित, 

और यह जीवन समर्पित। 

चाहता हूँ देश की धरती,  

तुझे कुछ और भी दूँ।

अर्थ- प्रस्तुत पद्यांश रामावतार त्यागी द्वारा रचित "चाहता हूँ" शीर्षक कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने अपने देश की धरती के उपकारों के प्रति सर्वस्व अर्पित करना चाहा है। कवि अपना मन, अपना तन और अपना संपूर्ण जीवन अपने मातृभूमि को न्यौछावर करना चाहता है। लेकिन कवि इससे भी संतुष्ट नहीं है। वह मातृभूमि को कुछ और देना चाहता है। वास्तव में हम अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के उपरांत भी मातृभूमि के ऋण से उऋण नहीं हो सकते ।

ख) माँ तुम्हारा ऋण बहुत है मैं अकिंचन, 

किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन। 

थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी, 

कर दया स्वीकार लेना यह समर्पण।

अर्थ- प्रस्तुत पद्यांश रामावतार त्यागी द्वारा रचित "चाहता हूँ" शीर्षक कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि मातृभूमि से कहता है कि हे माँ! आपका मुझपर अत्यधिक उपकार है और मैं अति निर्धन हूँ। किंतु मैं आपसे विनती कर रहा हूँ कि जब भी मैं थाल में अपना मस्तक सजाकर आप को समर्पित करना चाहूं तो आप मुझ गरीब पर अपनी दया बरसाते हुए मेरा यह समर्पण स्वीकार कर लेना।

ग) मान अर्पित, प्राण अर्पित, 

रक्त का कण- कण समर्पित। 

चाहता हूँ देश की धरती,  

तुझे कुछ और भी दूँ। 

अर्थ- प्रस्तुत पद्यांश रामावतार त्यागी द्वारा रचित "चाहता हूँ" शीर्षक कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने अपने समर्पण और देश भक्ति के भाव को प्रकट किया है। वह अपनी मान- मर्यादा, अपना प्रत्येक श्वास मातृभूमि के चरणों में समर्पित करना चाहता है। साथ ही वह अपने खून का कण- कण तक मातृभूमि के प्रति समर्पित करने का हौसला रखता है। इतना सब कुछ अपने मातृभूमि को समर्पित करने के उपरांत भी कवि संतुष्ट नहीं है। वह मातृभूमि को कुछ और भी देना चाहता है।


घ) माँज दो तलवार को, लगाओ न देरी, 

बाँध दो कसकर कमर पर ढाल मेरी।

भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी, 

शीश पर आशीष की छाया घनेरी।

अर्थ- प्रस्तुत पद्यांश रामावतार त्यागी द्वारा रचित "चाहता हूँ" शीर्षक कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि का कहना है कि वह अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए बिल्कुल तैयार है। अतः तलवार को माँजकर धार बनाने में देर न किया जाए। कमर पर ढाल को कसकर बाँधा जाए। उसके मस्तक पर माता के चरणों की धूल का तिलक लगा दिया जाए और उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया जाए ताकि वह अपने मातृभूमि की रक्षा कुशलतापूर्वक कर सके।


ङ) स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित, 

आयु का क्षण- क्षण समर्पित। 

चाहता हूँ देश की धरती,  

तुझे कुछ और भी दूँ। 

अर्थ- प्रस्तुत पद्यांश रामावतार त्यागी द्वारा रचित "चाहता हूँ" शीर्षक कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि का कहना है कि उसने जीवन के सारे सुख -स्वप्न मातृभूमि को अर्पित किया है। उसकी जिज्ञासा, कौतूहल, प्रश्न भी मातृभूमि को अर्पित है। उसके जीवन की आयु का क्षण- क्षण भी मातृभूमि को ही समर्पित है। लेकिन तब भी वह संतुष्ट नहीं है। इसलिए वह देश की धरती को कुछ और समर्पित करना चाहता है।


च) तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो, 

गाँव मेरे द्वार-घर, आंगन क्षमा दो। 

आज सीधे हाथ में तलवार दे दो, 

और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो।

अर्थ- प्रस्तुत पद्यांश रामावतार त्यागी द्वारा रचित "चाहता हूँ" शीर्षक कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों में कवि चाहता है कि वह अपना संपूर्ण जीवन देश की सेवा में अर्पित कर दे। इसलिए वह अपने रिश्ते- नाते, मोह- माया के बंधन को तोड़ रहा है । वह अपने घर- द्वार , आँगन एवं गाँव से विलग हो रहा है, उसे सब क्षमा कर दें। वह दाएँ हाथ में तलवार और बाएँ हाथ में अपने देश का झंडा को थाम कर ओजस्विता की भावना को महसूस करता है ताकि मातृभूमि की ऋण से उऋण हो सके।


छ) सुमन अर्पित, चमन अर्पित, 

नीड़ का तृण- तृण समर्पित ।

चाहता हूँ देश की धरती,  

तुझे कुछ और भी दूँ। 

अर्थ- प्रस्तुत पद्यांश रामावतार त्यागी द्वारा रचित "चाहता हूँ" शीर्षक कविता से उद्धृत है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहता है कि वह अपनी मातृभूमि के लिए फूल एवं फुलवारी को भी न्योछावर करना चाहता है। वह अपने घर रूपी नीड़ का प्रत्येक तिनका अपनी मातृभूमि के नाम करना चाहता है। इतने से भी कवि संतुष्ट नहीं है। इसलिए वह चाहता है कि अपने देश की धरती को कुछ और भी समर्पित करे।


3) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

क) हमारे ऊपर अपनी मातृभूमि का क्या- क्या ऋण हो सकता है?

उत्तर- हमारे ऊपर अपनी मातृभूमि का अन्न, वस्त्र, आश्रय, जल, वायु आदि का ऋण हो सकता है।

ख) कवि अपनी मातृभूमि को अपना सब कुछ समर्पित क्यों करना चाहता है?

उत्तर- कभी अपनी मातृभूमि को अपना सब कुछ समर्पित करना चाहता है क्योंकि अपना जीवन, धन, मान- सम्मान आदि इसी धरती से पाया है। मातृभूमि ने उसे जो कुछ भी प्रदान किया है, वह उससे कभी उऋण नहीं हो सकता।

ग) "थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी" पंक्ति में निहित भाव को स्पष्ट करें।

उत्तर- "थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी" पंक्ति में निहित भाव यह है कि कवि स्वयं को मातृभूमि का ऋण चुका पाने में असमर्थ महसूस कर रहा है। इसलिए वह उस ऋण को चुकाने के लिए जब अपना मस्तक थाल में सजाकर ले जाए तो मातृभूमि उसे सहर्ष स्वीकार करें।

घ) कविता में युद्ध में जाने से पूर्व किस तरह की तैयारी की बात की गई है?

उत्तर- कविता में युद्ध में जाने से पूर्व तलवार को चमकाकर, कमर में ढाल को कसकर बाँध देने, मस्तक पर मातृभूमि के चरणों की धूल का तिलक करने तथा दाएँ हाथ में तलवार और बाएँ हाथ में राष्ट्र ध्वज को थमाने जैसी क्रियाओं की तैयारी की बात की गई है।

ङ) कविता में अपने गाँव -घर से क्षमा- याचना की बात क्यों की गई है?

उत्तर- कविता में अपने गाँव -घर से क्षमा- याचना की बात की गई है क्योंकि कवि मातृभूमि के प्रति समर्पण के भाव से उसकी रक्षा और सम्मान के लिए अपने गाँव- घर से मोह का बंधन तोड़ने की बात कर रहा है। यदि देश की रक्षा करने के क्रम में कवि की मृत्यु हो जाएगी तो गाँँव -घर उसके बिछुुड़ने पर  दुःख न हो, उसे क्षमा कर दें।

च) आपकी समझ में कवि ने देश की धरती को माँ कहकर क्यों संबोधित किया है?

उत्तर- कवि ने देश की धरती को माँ कहकर संबोधित किया है क्योंकि जिस तरह एक माँ अपने बच्चे की हर छोटी से छोटी जरूरतों को ध्यान रखती है, उन्हें पूरा करने की भरपूर कोशिश करती है, वैसे ही धरती मानव रूपी अपनी संतान को वह सब देना चाहती है जिसकी उसको चाह और जरूरत है। 


भाषा संदर्भ:-


1) निम्नलिखित पुनरावृत्त शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-

क) धीरे- धीरे= सेना धीरे- धीरे चलती है।

ख) मंद- मंद= सुमन मंद -मंद मुस्कुरा रही है।

ग) चलते- चलते= सीता चलते- चलते थक गयी।

घ) हंसते-हंसते =सोहन हंसते -हंसते लोटपोट हो गया।

ङ) थोड़ा- थोड़ा = कौए ने थोड़ा -थोड़ा करके पानी पी लिया।


2) इन्हें परिभाषित कीजिए-

क) तत्सम- जो शब्द संस्कृत भाषा के हैं और उसी रूप में हिंदी में प्रयोग किए जाते हैं, उन्हें तत्सम शब्द करते हैं। जैसे- तृण, ग्राम, हस्त आदि।

ख) तद्भव - संस्कृत के ऐसे शब्द जिनका रूप परिवर्तन होकर हिंदी भाषा में प्रयोग होता है, उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं। जैसे- दाँत, दूध, आम आदि।

3) इन शब्दों के तद्भव शब्द लिखिए-

क) दन्त= दांत   ख) दुग्ध =दूध   ग) आम्र= आम    घ) तृण = घास 

ङ) ग्राम = गाँव    च) हस्त= हाथ   छ) गृह = घर    ज) धातृ= धरती


4) इन शब्दों के तत्सम शब्द लिखिए-

क) सपना = स्वप्न   ख) आग= अग्नि    ग) चाँद= चंद्र    घ) पोता= पौत्र 

ङ) ताँबा - ताम्र




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