Saraswati Shishu Mandir - Focal Point of My Worldly Family / सरस्वती शिशु मंदिर - मेरे विश्वरूपी परिवार का केंद्र बिंंदु
परिवार मनुष्य के इर्दगिर्द का वह क्षेत्र है जहाँ उसके जन्मोपरांत उसका विकास रथ उन्नत-अवनत मार्गो से होते हुए आमरण गतिमान रहता है। वैसे तो किसी शिशु के लिए माता, पिता, भाई और बहन ( यदि भाई- बहन हों) ही उसका परिवार है क्योंकि पहले वह केवल इन्ही लोगों के बीच में रहता है और इन्ही लोगों को ही पहचानता है। जैसे ही वह बड़ा होता जाता है उसके परिवार की परिधि बढ़ती जाती है। अब तक तो आप समझ गये होंगे कि परिवार का सबसे छोटा रूप कौन - सा है? क्या आप जानते हैं कि परिवार का सबसे बड़ा रूप कौन - सा है ?
परिवार का सबसे बड़ा रूप इतना विशाल और विस्तृत है कि संसार के हर व्यक्ति के लिए इसे समझना, परखना, पहचानना, जानना और अपनाना मुश्किल होता है। परन्तु हम भारतीय किसी भी मुश्किल कार्य को असंभव कार्य नहीं समझते हैं अपितु असंभव कार्य को संभव कर दिखाते हैं ।
हमारी दृष्टि में दुनिया का कोई भी व्यक्ति हमसे पराया नहीं है, उससे हमारा कुछ न कुछ सम्बन्ध अवश्य ही है चाहे वह माता- पिता का सम्बन्ध हो, भाई- बहन का सम्बन्ध हो, शत्रु- मित्र का सम्बन्ध हो या फिर पड़ोसी- दूर दराज का सम्बन्ध हो या फिर चाचा- चाची, ताऊ -ताई, बुआ -फूफा, दादा -दादी, मामा- मामी, नाना -नानी आदि जैसे कुछ अन्य सम्बन्ध हो। आप जानते हैं कि जिसके साथ भी हमारा कुछ सम्बन्ध रहता है वह हमारा अपना ही होता है और अपनों से ही परिवार का निर्माण होता है। इस तरह सारा संसार यानी पूरी दुनिया हमारा परिवार है। इस तथ्य को जो जितना समझा उतना ही बड़ा उसका परिवार बना।
हमारे पूर्वज बहुत पूर्व ही इस तथ्य को भलीभाँति समझ चुके थे। इसलिए तो वे कहे हैं- "बसुधैव कुटुम्बकम्", जिसका अर्थ है- पूरी बसुधा यानी पृथ्वी ही हमारा कुटुंब यानी परिवार है।
अतः हम भारतीय के लिए यह सारा संसार हमारा परिवार है । यही परिवार का सबसे बड़ा रूप है। अभी तक हमने परिवार का जिस विशाल रूप को समझा उससे भी कई गुणा अधिक विस्तृत रूप को हमारे पूर्वज समझ चुके थे, उसे अपना चुके थे, जिसे हम परिवार का विश्वरूप कह सकते हैं । क्योंकि उनका भावनात्मक लगाव केवल मनुष्यों के साथ नहीं अपितु संसार के समस्त प्रकार के जीवों और पेड़- पौधों के साथ भी था। इनके साथ- साथ वे नदी - सागर, पहाड़- जंगल, जैसे जड़ वस्तुओं के साथ भी अपना सम्बन्ध स्थापित कर चुके थे। प्रकृति के सारे जड़- चेतन वस्तुओं के अलावा हमारे पूर्वज वायुमंडल के वायु, सौरमंडल के सूर्य सहित सभी ग्रह- उपग्रहों एवं अनन्त अंतरीक्ष के तारों और नक्षत्रों आदि के साथ भी सम्बन्ध स्थापित कर चुके थे। हमारे पूर्वज उन्हें अपना आराध्य मानकर उनकी आराधना करते थे। आज हम भी उनकी पूजा- आराधना करते आ रहे हैं। यानी आज भी उनके साथ हमारा भावनात्मक लगाव है। अब आप समझ रहे होंगे कि परिवार का कितना विशाल और विस्तृत रूप है।
हमारा विद्यालय सरस्वती शिशु मंदिर उस विश्वरूपी परिवार का एक ऐसा केन्द्र बिन्दु है जहाँ के भैया- बहन अपने देश भारतवर्ष को विश्वरूपी परिवार का मुखिया बनाने की संकल्पना को अपने हृदय में धारण कर पूरी दुनिया में अपने देश का कीर्ति पताका लहरा रहे हैं और आगे भी लहराते रहेंगे।
भैया- बहनों! स्मरण रखिए, छोटा - छोटा परिवार को जोड़कर ही बड़ा परिवार का निर्माण होता है। हमें आपस में मिलकर रहना है और शत्रुओं पर भी प्रेम से विजय पाना है। हमारा ध्येय है जोड़ना, तोड़ना नहीं। जोड़ - जोड़ का संकल्प लेकर हमें खंडित भारत को पुनः अखंडित करना है और विश्वगुरु बनाना है।
भारत माता की जय ! धरती माता की जय ! !
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2 Comments
Achhi soch achha bichar.
ReplyDeleteSidha dil me dastakh deta hai
धन्यवाद
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