वन की शोभा
उस विशाल विस्तृत कानन में रम्य अनेकों वन थे,हरे भरे तरुवर जिनमें उस कानन के धन थे।
रच रच नीड बसाकर दुनिया खग आनंद -मगन थे,
थे निर्झर, जी सर -सरिताएं, फल थे, सरस सुमन थे।।1।।
इस कानन के मध्य भाग में सुंदर 'पल्लव वन' था,
कानन भर में यही एक ही पल्लव का उपवन था।
तरह-तरह के पल्लव थे , अति कोमल जिनका तन था,
छन -छन उड़कर जिन पर जाकर चिपका रहता मन था।।2।।
चारों और घिरा था वह वन -सरिताओं के जल से ,
होता था मुखरित सारा वन जल के मृदु कलकल से।
फूट पड़ी है अमृतधारा मीठी पृथ्वी तल से,
ऐसा सोच वहाँ आते थे पंछी तरुवर दल से।।3।।
जगह-जगह थे झील सरोवर जिनमें निर्मल जल था ,
जहां नहाता, पानी पीता वन का पंछी दल था ।
क्यारी -क्यारी में वैसे तो लगा न जल का नल था ,
फिर भी क्या जाने क्यों उनमें जल बहता चंचल था।।4।।
- गोपाल सिंह 'नेपाली'
"वन की शोभा" का विडिओ देखें-
विशाल = बड़ा
खग = पंछी
मृदु = कोमल
नीड= घोंसला
मुखरित = आवाज से गूंजता हुआ
पल्लव वन = नए पत्तों का सुंदर जंगल
नीड़ रच रच = घोंसले बनाकर
वन सरिता = जंगल की नदियां
कानन का धन = हरे भरे पेड़ पौधे
बसाकर दुनिया = घोंसले में परिवार बसाकर
कानन = वन
सुमन = फूल
विस्तृत = चौड़ा ,फैला हुआ
सर = पोखर
चंचल = चलायमान , चुलबुला
तरुवर= पेड़
तन= शरीर
रम्य = सुंदर
पल्लव = नया पत्ता
2• विशेषण - संज्ञा
विशाल - कानन
सरस - सुमन
मीठी - अमृतधारा
विस्तृत - कानन
मध्य - भाग
निर्मल - जल
रम्य - वन
मृदु - कलकल
चंचल - जल
3• निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
क) कानन के धन क्या क्या थे ?
उत्तर - कानन के धन हरे भरे पेड़ -पौधे थे ।
ख) कानन (जंगल) में क्या-क्या वस्तुएँ थी ?
उत्तर - कानन (वन) में हरे भरे पेड़ -पौधे , पशु -पक्षी , घोंसले , तालाब, नदी ,झरना ,फल ,फूल आदि वस्तुएँ थी।
ग) पल्लव वन कहां था ?
उत्तर - पल्लव वन विशाल विस्तृत कानन के मध्य भाग में था।
घ) पल्लव वन की और मन क्यों खींचता था ?
उत्तर - पल्लव वन में पत्तियाँ इतनी कोमल और आकर्षक थी कि उनकी ओर सबका मन खींचता चला जाता था ।
ङ) पल्लव वन किनसे घिरा हुआ था ?
उत्तर - पल्लव वन , वन सरिताओं के जल से घिरा हुआ था। च) वहां पंछी क्यों आते थे ?
अभ्यास -
1• पढ़ें और समझें विशाल = बड़ा
खग = पंछी
मृदु = कोमल
नीड= घोंसला
मुखरित = आवाज से गूंजता हुआ
पल्लव वन = नए पत्तों का सुंदर जंगल
नीड़ रच रच = घोंसले बनाकर
वन सरिता = जंगल की नदियां
कानन का धन = हरे भरे पेड़ पौधे
बसाकर दुनिया = घोंसले में परिवार बसाकर
कानन = वन
सुमन = फूल
विस्तृत = चौड़ा ,फैला हुआ
सर = पोखर
चंचल = चलायमान , चुलबुला
तरुवर= पेड़
तन= शरीर
रम्य = सुंदर
पल्लव = नया पत्ता
2• विशेषण - संज्ञा
विशाल - कानन
सरस - सुमन
मीठी - अमृतधारा
विस्तृत - कानन
मध्य - भाग
निर्मल - जल
रम्य - वन
मृदु - कलकल
चंचल - जल
3• निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-
क) कानन के धन क्या क्या थे ?
उत्तर - कानन के धन हरे भरे पेड़ -पौधे थे ।
ख) कानन (जंगल) में क्या-क्या वस्तुएँ थी ?
उत्तर - कानन (वन) में हरे भरे पेड़ -पौधे , पशु -पक्षी , घोंसले , तालाब, नदी ,झरना ,फल ,फूल आदि वस्तुएँ थी।
ग) पल्लव वन कहां था ?
उत्तर - पल्लव वन विशाल विस्तृत कानन के मध्य भाग में था।
घ) पल्लव वन की और मन क्यों खींचता था ?
उत्तर - पल्लव वन में पत्तियाँ इतनी कोमल और आकर्षक थी कि उनकी ओर सबका मन खींचता चला जाता था ।
ङ) पल्लव वन किनसे घिरा हुआ था ?
उत्तर - पल्लव वन , वन सरिताओं के जल से घिरा हुआ था। च) वहां पंछी क्यों आते थे ?
उत्तर - वहां पंछी पानी पीने और नहाने के लिए आते थे।
4• कविता का भावार्थ-
उस बड़े जंगल में अनेक छोटे-छोटे सुंदर वन थे । जिनमें हरे -हरे वृक्ष थे। वे ही वन के धन थे। पंछी घोंसले बना कर खुश रहते थे। वहां नदियाँ ,सरोवर और झरने थे। वृक्षों में फूल और फल लगे हुए थे।
इसी जंगल के बीच 'पल्लव वन' था। वृक्षों के पत्ते अति कोमल तथा मनोहर थे। वह 'पल्लव वन' वन की नदियों से घिरा हुआ था । इसीलिए नदियों के कल- कल स्वर से वन गूंजता रहता था । लगता था कि जमीन के भीतर से अमृतधारा फुट निकली है । अतः वहाँ वृक्षों पर पंछी पहुंच जाते थे । झील और सरोवर में पंछी दल नहाता था। पानी पीता था। वन की क्यारियों में नल तो नहीं लगे थे पर प्रकृति की कृपा से निर्मल जल बहता रहता था । अतः वन की शोभा निराली थी।
4• कविता का भावार्थ-
उस बड़े जंगल में अनेक छोटे-छोटे सुंदर वन थे । जिनमें हरे -हरे वृक्ष थे। वे ही वन के धन थे। पंछी घोंसले बना कर खुश रहते थे। वहां नदियाँ ,सरोवर और झरने थे। वृक्षों में फूल और फल लगे हुए थे।
इसी जंगल के बीच 'पल्लव वन' था। वृक्षों के पत्ते अति कोमल तथा मनोहर थे। वह 'पल्लव वन' वन की नदियों से घिरा हुआ था । इसीलिए नदियों के कल- कल स्वर से वन गूंजता रहता था । लगता था कि जमीन के भीतर से अमृतधारा फुट निकली है । अतः वहाँ वृक्षों पर पंछी पहुंच जाते थे । झील और सरोवर में पंछी दल नहाता था। पानी पीता था। वन की क्यारियों में नल तो नहीं लगे थे पर प्रकृति की कृपा से निर्मल जल बहता रहता था । अतः वन की शोभा निराली थी।
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