कक्षा - चतुर्थ
हिंदी पाठ 23
अंग्रेजो के खिलाफ नाना साहब पेशवा, कुंवर सिंह, और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने संघर्ष आरंभ कर दिया था । सन् 1857 का विद्रोह आरा से दिल्ली तक फैल गया था । नाना साहब पेशवा की सेना के सेनापति तात्या टोपे थे। झांसी की सेना के साथ तात्या टोपे की सेना ग्वालियर की ओर बढ़ रही थी । ग्वालियर के राजा जयाजीराव को स्वाधीनता संघर्ष में साथ देने के लिए अनुरोध किया गया । जिया जी राव साथ नहीं हुए । अंग्रेजों के दबाव में सहमे रहे ।सन् 1857 का भामाशाह
सेना ग्वालियर पहुंच गई । अंग्रेजों की सेना पीछा कर रही थी । ग्वालियर में ही युद्ध होने वाला था। जियाजी राव को कहा गया कि किले का द्वार खोल दें । सेना को विश्राम मिले । सहायता मिले। फिर सभी मिलकर विदेशी शत्रु अंग्रेजों से युद्ध करेंगे । पर ग्वालियर के राजा ने किले के द्वार को नहीं खोला। तात्या टोपे और लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर के किले पर आक्रमण कर दिया । ग्वालियर की सेना ने उनका साथ दिया । राजा को छिपना पड़ा। किले पर कब्जा हो गया । सेना को विश्राम मिला । अंग्रेजों से युद्ध की तैयारी होने लगी ।
सैनिकों को कई माह से वेतन नहीं मिला था । उनमें असंतोष जग रहा था । ग्वालियर में भी बेतन मिलने का आभास नहीं मिल रहा था । अंग्रेजों की फौज निकट आ रही थी । एक कठिन समस्या थी ।
उस समय अमरचंद बांठिया ग्वालियर राज्य के खजांची थे। बांठिया जी जैन परिवार के धनी मानी पुरुष थे । स्वाधीनता संग्राम के समर्थक थे । वह तो आजादी के सैनिकों की राह देख रहे थे । उन्होंने ग्वालियर राज्य के कोष से लगभग 21 लाख रुपए दे दिए । न वे राजा से डरे और न ही वे अंग्रेजों से भयभीत हुए । बांठिया जी तो सम्मानित खजांची थे । वे वेतन नहीं लेते थे । वे स्वयं धनी थे । सात्विक तथा निर्लोभी व्यक्ति थे । उन्हें न लोभ था और न भय़।
उसी धन से सैनिकों को वेतन दिया गया ।आगे के संघर्ष के लिए शस्त्र और अन्य वस्त्र का प्रबंध हुआ । युद्ध की पूरी तैयारी हुई । नाना साहब तात्या टोपे और लक्ष्मी बाई के साथ अमरचंद बांठिया के नाम का जय जयकार होने लगा ।
अंग्रेजों की फौज आ गई । युद्ध आरंभ हुआ । भयंकर युद्ध हुआ पर देश के दुर्भाग्य से अंग्रेज जीत गए। विद्रोही सैनिकों को पीछे हटना पड़ा । लक्ष्मी बाई अंतिम क्षण तक लड़ती रही । अंत में घायल होने पर मैदान से उन्हें हटना पड़ा । वह देश के लिए बलिदान हो गई ।
ग्वालियर पर अंग्रेजो का कब्जा हो गया है । जिया जी राव फिर से राजा बने । अंग्रेजों से विद्रोह करने वाले निर्भीक अमरचंद बांठिया कैद कर लिए गए । उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में सहायता की थी । अंग्रेजों ने उन्हें अपराधी माना। उन्हें फांसी का दंड मिला । ग्वालियर के सर्राफा बाजार के नीम वृक्ष पर अंग्रेजों ने देशभक्त अमरचंद को फांसी दे दी ।
सेठ अमरचंद बांठिया सन् 1857 के स्वाधीनता संग्राम के भामाशाह थे ।
अभ्यास
1. पढ़े और समझे-स्वाधीनता संघर्ष - स्वाधीनता के लिए युद्ध
अनुरोध - नम्रता के साथ कहना
आक्रमण - हमला
आभास - मालूम पड़ना
सात्विक - सतगुणों से भरपूर , अच्छे गुणों से युक्त
विश्राम - आराम
असंतोष - संतोष नहीं
कोष - खजाना
निर्लोभी - लोभ रहित
निर्भीक- भय रहित
2. वाक्य में प्रयोग कर निम्न शब्दों का लिंग निर्णय करें -
विद्रोह (पु○) - चारों तरफ विद्रोह फैल गया ।
सेना (स्त्री○)- सेना युद्ध के लिए तैयार थी ।
युद्ध (पु○) - युद्ध खत्म हो गया ।
विश्राम (पु○) - सेना को विश्राम मिला ।
समस्या (स्त्री○) - एक नई समस्या आ गई ।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें -
(क) नाना साहेब तथा तात्या टोपे ने संघर्ष कब आरंभ किया ?
उत्तर- नानासाहेब तथा तात्या टोपे ने संघर्ष सन 1857 में आरंभ किया।
(ख) इस स्वाधीनता संघर्ष में मुख्य रूप से कौन-कौन थे ?
उत्तर- इस स्वाधीनता संघर्ष में मुख्य रूप से नानासाहेब पेशवा कुंवर सिंह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई तात्या टोपे अमरचंद बांठिया आदि थे ।
(ग) जियाजी राव ने साथ क्यों नहीं दिया ?
उत्तर- जिया जी राव अंग्रेजों के डर से सहमे रहे इसलिए उन्होंने साथ नहीं दिया ।
(घ) ग्वालियर राज्य के खजांची कौन थे ?
उत्तर- ग्वालियर राज्य के खजांची अमरचंद बांठिया थे ।
(ङ) ग्वालियर के कोषाध्यक्ष ने क्या सहायता की ?
उत्तर- ग्वालियर के कोषाध्यक्ष ने ग्वालियर राज्य के कोष से लगभग 21 लाख रुपए देकर सहायता की ।
(च) लक्ष्मीबाई ने स्वाधीनता के लिए क्या किया ?
उत्तर- लक्ष्मीबाई ने स्वाधीनता के लिए अंग्रेजों से अंतिम क्षण तक लड़ती रही ।
(छ) अमरचंद बांठिया के साथ क्या हुआ ?
उत्तर- अमरचंद बांठिया को कैद कर लिया गया और उन्हें अपराधी मानकर फांसी दे दिया गया ।
(ज) अमरचंद को क्या कहा जा सकता है ?
उत्तर- अमरचंद को सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के भामाशाह कहा जा सकता है ।
(झ) भामाशाह कौन थे ?
उत्तर- ग्वालियर राज्य के खजांची अमरचंद बांठिया भामाशाह थे ।
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