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कक्षा 3 हिंदी | महाभारत भाग 9 | तीखे बोल पाठ प्रश्न-उत्तर, सारांश और अभ्यास

 


कक्षा तृतीय के महाभारत पाठ्यपुस्तक से लिया गया पाठ “तीखे बोल” (पाठ 9) की पूरी कहानी (सारांश) और इसके अंत में दिए गए प्रश्न–उत्तर दोनों तैयार करके दिया गया है।



कहानी / सारांश : तीखे बोल

ईश्वर ने सभी प्राणियों से बढ़कर मनुष्य को बोलने की शक्ति दी है। यदि मनुष्य मधुर वाणी बोले तो वह सबका प्रिय बन जाता है, लेकिन यदि तीखे वचन बोले तो अपने भी पराये हो जाते हैं। महाभारत युद्ध के पीछे भी एक तीखी बोली कारण बनी थी।

इन्द्रप्रस्थ का राजमहल बहुत ही अद्भुत और शानदार था। उसमें रंग–बिरंगे पत्थर और शिल्पकला इतनी सुंदर थी कि असली और नकली चीज़ों का भेद करना कठिन था। एक दिन दुर्योधन वहाँ गया। राजमहल की सुंदरता देखकर उसका मन ईर्ष्या से जल उठा।

वह भ्रमित होकर महल में घूम रहा था। वहाँ रंगीन फर्श और पारदर्शी जल के कारण धोखा खा गया। एक जगह उसने पानी समझकर पैर नहीं बढ़ाया जबकि वहाँ फर्श थी। दूसरी जगह उसने फर्श को ज़मीन समझकर कदम बढ़ाया और पानी में गिर पड़ा। उसके कीमती कपड़े भीग गए।

इस दृश्य को देखकर द्रौपदी और उसकी सहेलियाँ हँस पड़ीं। द्रौपदी ने व्यंग्य करते हुए कहा – "अंधे का बेटा अंधा!" यह सुनकर दुर्योधन को बहुत अपमानित महसूस हुआ। अपमान के कारण उसने प्रतिज्ञा की कि जब तक वह द्रौपदी का अपमान नहीं करेगा, चैन से नहीं बैठेगा।

इसी घटना के कारण आगे चलकर द्रौपदी चीरहरण हुआ और यही महाभारत युद्ध का कारण बना। इस प्रकार एक तीखे बोल ने महायुद्ध को जन्म दिया।


प्रश्न–उत्तर

प्रश्न 1 : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

(क) दुर्योधन को महल की सुंदरता अच्छी क्यों नहीं लगी?
👉 क्योंकि उसके मन में ईर्ष्या थी, इसलिए महल की सुंदरता भी उसे नहीं भायी।

(ख) दुर्योधन के पानी में गिरने पर द्रौपदी ने क्या व्यंग्य किया?
👉 द्रौपदी ने व्यंग्य किया – "अंधे का बेटा अंधा!"

(ग) द्रौपदी के व्यंग्य से खीजकर दुर्योधन ने क्या निश्चय किया?
👉 दुर्योधन ने निश्चय किया कि जब तक वह द्रौपदी का अपमान नहीं करेगा, तब तक चैन से नहीं बैठेगा।

(घ) महाभारत युद्ध का कारण क्या था?
👉 द्रौपदी के तीखे बोल।


प्रश्न 2 : रिक्त स्थान भरिए –

(क) चाहे तो प्यार बोलकर सारे जग को अपना बना लें।
(ख) गलती से तीखा बोल दें तो अपने भी पराए बन जाते हैं।
(ग) महाभारत युद्ध का कारण भी एक तीखी बोली ही थी।
(घ) चतुर्दिक फैली शोभा ने राजमहल को स्वप्नलोक के समान सजा दिया था।
(ङ) रंगीन जल ऐसा शोभायमान था, जैसे रंग–बिरंगे पत्थर जड़े हों।




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