क्या भगवान होते हुए भी शिवजी को यह पता नहीं था कि गणपति उनका अपना ही पुत्र था? अगर पता था तो उन्होंने गणपति का सिर क्यों काटा?
नीचे श्री गणेश से जुड़े सात महत्वपूर्ण प्रश्न के उत्तर दिए गए हैं, जिन्हें पढ़कर आपको बहुत कुछ जानने को मिलेगा।
1) श्री गणेश की उत्पत्ति कैसे हुई?
एक बार माता पार्वती एकांत में अपनी सखी जया और विजया के साथ विचार विमर्श कर रही थी। तब जया ने माता पार्वती से कहा कि आपका कोई निजी सेवक होना चाहिए। माता पार्वती ने बोली मेरा निजी सेवक की क्या जरूरत है, यहां शिव जी के तो हजारों गण हैं जो हमारी दिन रात सेवा करते रहते हैं। यहाँ मुझे किसी प्रकार की असुविधा और अभाव महसूस नहीं होती है तुम लोग यह व्यर्थ की बात करना छोड़ दो। तब विजया ने कहा कि जया बिल्कुल सत्य बोल रही है।
जया ने बताई कि शिवजी के सभी गण हमेशा शिवजी के आदेश का पालन करते हैं। यदि किसी समय आप दोनों को किसी सहायता की आवश्यकता पड़ गई तो सभी गण तो पहले शिव जी की आज्ञा का पालन करेंगे। क्या आपको नहीं लगता कि आप अपनी स्वतंत्रता एवं सुरक्षा के लिए किसी निजी सेवक की जरूरत हो। मान लीजिए हम तीनों जल क्रीड़ा या स्नान कर रहे हों, तभी शिवजी आ जाएं तो क्या यह उचित होगा? क्योंकि उस समय शिवजी को कोई भी गण रोक नहीं सकेगा और कोई भी उनकी अवज्ञा नहीं करेगा। तब माता पार्वती को जया की बातें थोड़ा उचित लगा और उन्होंने सेवकों की परीक्षा के लिए मुख्य गण नंदी और भृंगी को बुलाया। माता पार्वती ने उन्हें आदेश दिया कि हमारे स्नान के दौरान कोई भी यहाँ प्रवेश न कर सके। कोई भी, चाहे कहीं से भी आएँ, उन्हें यहाँ भवन में प्रवेश करने नहीं देना है। माता पार्वती ने सेवकों को आदेश देकर अपनी सखियों के साथ स्नान करने चली गई। नंदी और भृंगी द्वार पर पहरा दे रहे थे । इधर माता पार्वती को पूर्ण विश्वास था कि ये सेवक पूरी निष्ठा पूर्वक पहरा देंगे और किसी को भी अंदर आने नहीं देंगे। तभी द्वार पर शिव जी का आगमन हुआ। दोनों सेवक महादेव को रोकने का प्रयास अवश्य किये और महादेव के द्वारा कारण पूछे जाने पर उन्होंने रोकने का कारण भी बताया। परंतु महादेव क्रोधित हो गए और उनके क्रोध का सामना करने में दोनों सेवक असमर्थ थे । इसलिए उन्होंने भयवश होकर उनका मार्ग छोड़ दिया और महादेव भवन के अंदर प्रवेश कर गए हैं जहाँ माता पार्वती अपनी सखियों के साथ स्नान कर रही थी । महादेव के भीतर आने पर जया और विजया अपनी लाज बचाने हेतु कहीं छुप गयीं परंतु माता पार्वती अपने आप को क्रोधित होने से रोक नहीं पाई। महादेव तो चले गए परंतु माता पार्वती को अब विश्वास हो चुका था कि उनकी निजता की रक्षा के लिए एक अंश बनाना आवश्यक है, जो केवल उनकी ही आज्ञा का पालन करेगा। तब माता पार्वती ने अपने शरीर से उबटन (सरसों तेल आदि का लेप) को उतारकर उससे एक मूर्ति का निर्माण कर उसमें प्राण का संचार किया। मूर्ति में प्राण संचार होते ही वह मूर्ति बालक का रूप लेकर खड़ा हो गया और माता पार्वती को माता बोलकर पुकारा। माता पार्वती अपने पुत्र को पाकर बहुत प्रसन्न हो गई और उन्होंने उस बालक का नाम गणों में श्रेष्ठ गणपति रखा।
2) गणपति का सिर कैसे कटा?
माता पार्वती ने गणपति को शस्त्र और मोदक प्रदान कर उन्हें द्वार पर प्रहरी के रूप में रहने का आदेश दिया और कहा कि किसी को भी अंदर प्रवेश करने ना दें। जो कोई भी गणपति की आज्ञा का उल्लंघन करेगा वह उससे युद्ध अवश्य करें और जो आज्ञा मान ले, उन पर कृपा की वर्षा अवश्य करें। यह कहकर माता पार्वती कंदरा के अंदर चली गई और उधर भगवान महादेव ने सोचा कि उनके कारण माता पार्वती काफी दुखी और नाराज हैं। इसलिए उन्होंने माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए उनके भवन की ओर आ रहे थे। तब उन्होंने माता पार्वती के द्वार पर एक अनजान बालक को देखा जो उन्हें रोकने का प्रयास किया। भगवान महादेव ने उस बालक को अपने मार्ग से हटने के लिए कहा लेकिन वह बालक द्वार पर डटा रहा किसी भी परिस्थिति में उसने महादेव को प्रवेश करने नहीं दिया तो उन्होंने वापस जाकर अपने गणों को उस बालक को द्वार से हटाने के लिए कहा और यह भी कहा कि आवश्यक हो तो युद्ध भी करें। सभी शिवगण आकर उस गणपति से पराजित हो गए। तब स्वर्ग से इंद्र के साथ अन्य देवता भी आकर गणपति को द्वार से हटाने का प्रयास किया। अंततः उन्हें भी पराजित होकर वापस लौटना पड़ा। अंत में स्वयं ब्रह्मा जी उन्हें समझाने के लिए आये। लेकिन वे भी विफल रहे तब शिवजी अत्यंत क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपना त्रिशूल से उस गणपति के सिर को उसके धड़ से अलग कर दिया।
3) क्या भगवान होते हुए भी शिवजी को यह पता नहीं था कि गणपति उनका अपना ही पुत्र था? अगर पता था तो उन्होंने गणपति का सिर क्यों काटा?
भगवान को सब कुछ पता होता है शिव जी को भी यह पता था कि गणपति उनका अपना ही बेटा था। इसलिए उनका शीश धड़ से अलग करते समय उनकी आंखों से आंसू निकल पड़े। वे तो केवल एक शाप की मर्यादा का पालन कर रहे थे। अगर आप सोच रहे हैं कि कैसा शाप जिसके कारण शिव जी को अपने पुत्र का सिर काटना पड़ा तो चलिए जानते हैं...
उस समय की बात है जब शिव पार्वती के वरदान पाकर दैत्यराज सुकेश के पराक्रमी पुत्र माली और सुमाली के बुरे कर्मों से सूर्य देव क्रोधित थे। सूर्य देव ने माली और सुमाली के शरीर से संपूर्ण ऊर्जा को छीन लिया और उन्हें शक्तिहीन कर दिया। तब उन दोनों ने महादेव की प्रार्थना की और अपनी रक्षा के लिए गुहार लगाई। माली और सुमाली की प्रार्थना सुनकर शिवजी सूर्य देव के पास आए और उन्होंने अपने त्रिशूल से सूर्य देव को आहत कर दिया। तब सूर्यदेव आहत होकर अपने पिताजी को पुकारते हुए धरती पर गिर गये। सूर्यदेव के घायल होते ही पूरे संसार में अंधकार छा गया और जब उनके पिता कश्यप (महर्षि मरीचि के पुत्र) अपने पुत्र को घायल होकर जमीन पर गिड़गिड़ाते हुए देखा, तब उन्होंने महादेव को श्राप दे दिया और कहा कि जिस प्रकार महादेव ने मेरे पुत्र सूर्य को घायल करके पितृ प्रेम को कष्ट पहुंचाया है, उसी प्रकार एक दिन महादेव भी स्वयं अपने हाथों से अपने त्रिशूल से अपने ही पुत्र का सिर काटेंगे।
उसी श्राप का परिणाम है जो गणपति का सिर भगवान महादेव के त्रिशूल से कटा।
4) अपने पुत्र को मृत अवस्था में देखकर माता पार्वती ने क्या किया?
अपने पुत्र गणपति को मृत अवस्था में देखकर माता पार्वती विलाप करती रही और अत्यंत क्रोधित हो गई। उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और अन्य सभी देवताओं को पूछा कि इस घटना के उत्तरदायी कौन है? परंतु सभी मौन रहे किसी ने भी उत्तर नहीं दिया। तब माता पार्वती क्रोधित होकर अपनी ही स्वरूपा महाकाली को बुलाया और पूरे संसार में उथल-पुथल कर सबकुछ नष्ट भ्रष्ट करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इस संसार में यदि मेरा पुत्र नहीं तो यह संसार भी नहीं बचेगा। तब ब्रह्मा, विष्णु आदि देवता त्राहि- त्राहि कर रहे थे । सबने माता पार्वती से शांत होने की प्रार्थना की। लेकिन माता पार्वती ने कहा कि मेरा क्रोध तभी शांत हो सकता है, जब मेरा पुत्र जीवित हो जाएगा । तब सभी भगवान शिव के शरण में गए । भगवान शिव जी ने भगवान विष्णु जी से कहा कि आप उत्तर दिशा में जाइए और सबसे पहले जो भी प्राणी मिले उसका सिर अपने सुदर्शन से काटकर यहाँ ले आएँ। भगवान विष्णु अपने गरुड़ पर सवार होकर उत्तर की ओर बढ़ चले। तब उन्होंने घने जंगल में एक हाथी को देखा।
5) क्या भगवान विष्णु के हाथों एक निष्पाप जीव का वध होना उचित था?
भगवान विष्णु के हाथों एक निष्पाप जीव का वध होना उचित तो नहीं था परंतु उस हाथी का सिर काटना कहीं अनुचित भी नहीं था। इसको जानने के लिए आपको नीचे की कहानी पढ़नी होगी।
एक बार की बात है स्वर्ग में देवराज इंद्र लोक हित का कार्य छोड़ कर अपने भोग- विलास में, नृत्य -संगीत में अन्य देवताओं के साथ डूबे हुए थे। लेकिन यह भोग विलास शिवभक्त ऐरावत हाथी जो समुद्र मंथन से निकला था, उसको पसंद नहीं था। उसने स्वर्ग में चल रहे भोग विलास नृत्य संगीत में बाधा उत्पन्न किया। तब देवराज ने क्रोधित होकर उस पर प्रहार किया। फिर भी ऐरावत का कुछ नहीं हुआ। तब इंद्र ने ऐरावत को श्राप देते हुए कहा कि तुम अपने दिव्य शक्ति से अहंकारी होते जा रहे हो। अतः तुम अपना दिव्य शक्ति खोकर धरती में एक सामान्य पशु के रूप में जीवन यापन करोगे और तब ऐरावत शक्तिहीन होकर धरती पर गिर पड़ा।
इंद्र के श्राप से दिव्य ऐरावत को केवल भगवान विष्णु ही मुक्त कर सकते थे। इसलिए उन्होंने अपना सुदर्शन चक्र का संधान कर ऐरावत को अपने शापित जीवन से मुक्त कर दिया और उसका सिर लेकर कैलाश पहुंचे। उस हाथी के सिर को लेकर भगवान महादेव ने गणपति के शरीर के साथ शल्य चिकित्सा के द्वारा जोड़ दिया और उनमें जीवन का संचार किया। इससे गणपति पुनः जीवित हो उठे। गणपति ने जीवित होकर सबसे पहले अपनी माता को पुकारा तब जाकर देवी पार्वती का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने अपने पुत्र को जीवित पाकर प्रसन्नचित्त होकर उन्हें अपने गले में लगा लिया। तब से गणपति गज (हाथी) का मस्तक (आनन) पाकर गजानन कहलाएँ और गजानन को गणों का ईश यानी गणेश कहा जाने लगा।
6) गणपति के कटा हुआ सिर का क्या हुआ?
हाथी का सिर पाकर गणपति तो गजानन हो गये परंतु उनका कटा हुआ सिर अभी भी न्याय के लिए कभी शिवजी के पास तो कभी विष्णु के पास और कभी ब्रह्मा जी के पास गुहार लगाई। आखिर उस सिर का क्या दोष था? वह तो आदि शक्ति माता पार्वती का पुत्र था। वह तो केवल मात्र अपनी माता की आज्ञा का पालन कर रहा था। फिर शिवजी ने उसका सिर क्यों काटा? उसका क्या दोष था? गौरी नंदन का वह कटा हुआ सिर त्रिदेव के मन को विचलित कर रहा था। तब त्रिदेवों ने गौरी पुत्र के कटे हुए सिर का न्याय करने का उचित समझा और उन्होंने गौरी पुत्र का कटा हुआ सिर और श्री गणेश दोनों को बुलाया। उन्होंने कहा कि तुम दोनों में कोई अंतर नहीं है परंतु तुम दोनों के कर्मों में बहुत ही अंतर होगा। त्रिदेवों ने गौरी पुत्र के कटे हुए सिर को विघ्नकर्ता और श्रीगणेश को विघ्नहर्ता का कार्य सौंपा। विघ्नकर्ता दुष्ट लोग जो मानवता के शत्रु हैं, उनके जीवन में विघ्न उत्पन्न करेंगे और विघ्नहर्ता श्री गणेश अच्छे लोगों के जीवन के हर विघ्न को दूर करेंगे।
गौरी नंदन का कटा हुआ सिर जिस गुफा में रखा हुआ था वह गुफा पाताल भुवनेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है , जो आज भी उत्तराखंड में स्थित है, जिसका खोज वर्तमान युग में आदि शंकराचार्य ने किया है।
7) सर्वशक्तिमान देवों के देव महादेव होते हुए भी उन्होंने बालक गणपति के कटे हुए सिर को पुनः क्यों नहीं जोड़ें? जबकि उन्होंने एक अलग सिर को लाकर जोड़ दिए ।
सर्वशक्तिमान देवों के देव महादेव होते हुए भी शिव जी बालक गणपति का कटा हुआ सिर को पुनः नहीं जोड़ें। उन्होंने एक अलग प्राणी के सिर को लाकर शल्य चिकित्सा द्वारा जोड़ दिया । इसके पीछे चार मुख्य कारण हैं-
पहला कारण है की त्रिदेव शापित ऐरावत का उद्धार करना चाहते थे।
दूसरा कारण है कि त्रिदेव श्री गणेश के द्वारा संसार में मैत्री की भावना का विस्तार करना चाहते थे।
तीसरा है कि वे दुष्कर्म करने वाले लोगों के जीवन में विघ्नकर्ता द्वारा बिघ्न डालना चाहते थे।
चौथा कारण यह है कि किसी शिशु का जन्म पुरुष और प्रकृति के मिलन से ही संभव होता है। जबकि गणपति जी का जन्म केवल मात्र माता पार्वती के इच्छा अनुरूप हुआ था। यही कारण है कि शिवजी उनका सिर काटकर दूसरा सिर लाकर शल्य चिकित्सा के द्वारा जोड़ दिए और अपनी शक्ति का उसमें संचार कर दिए। इससे गजानन शिव और पार्वती दोनों के पुत्र कहलाए।
0 Comments