अपने ध्वज का इतिहास
🚩 ध्वज किसी भी राष्ट्र अथवा देश अथवा समाज के चिंतन, ध्येय का प्रतीक तथा स्फूर्ति का केंद्र होता है।
🚩 वह राष्ट्रीय के यश, गौरव, वैभव, पराक्रम, त्याग, बलिदान, सम्मान आदि का स्मरण कराता है।
🚩 ध्वज को देखते ही वहाँ के समाज की संगठित शक्ति का अनुभव होता है तथा बिजीगीषु की भावना जागृत होने लगती है।
🚩 भगवा ध्वज अपने राष्ट्र का पुरातन ध्वज है। ऋग्वेद में इसका वर्णन है - "अरुणाः सन्तु केतवः"।
🚩 अति पुरातन काल अर्थात वैदिक काल से लेकर अंग्रेजों के साथ संघर्ष तक सभी चक्रवर्ती सम्राटों, महाराजाओं तथा सेनापतियों का यही ध्वज था।
जैसे- राजा दिलीप, राजा रघु, भगवान श्री राम, अर्जुन के रथ का ध्वज, हर्षवर्धन, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, छत्रसाल बुंदेला, राजा कृष्णदेव राय ( विजयनगर साम्राज्य), महाराजा रंजीत सिंह, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि सभी का ध्वज "भगवा ध्वज" ही था । इसी ध्वज की रक्षा के लिए सभी ने अपने प्राणों तक को न्यौछावर कर दिया। हिंदू के साथ-साथ सिख, बौद्ध, जैन आदि पंथों ने भी भगवा ध्वज को ही अपनाया हैं।
🚩 हजारों वर्षों से हमारे महान पूर्वजों ने श्रद्धा से इस ध्वज को स्वीकार किया और इसकी पूजा की। इसको भूलना अपने इतिहास को भूलना है अर्थात आत्म विस्मृति का महापाप करना है।
🚩 इस ध्वज का रंग उगते हुए सूर्य के समान है । उगता हुआ सूर्य अंधकार और रात्रि की सक्रियता को समाप्त कर प्रकाश और जीवंतता देता है। उदीयमान सूर्य ज्ञान और कर्मठता का प्रतीक हैं।
🚩 ध्वज यज्ञ की ज्वाला के अनुरूप होने के कारण त्याग, समर्पण, जनकल्याण की भावना, तप, साधना आदि का आदर्श धारण करता है।
🚩 यह ध्वज समाज हित में सर्वस्व अर्पण करने का प्रतीक है।
🚩 इसी भगवा ध्वज को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपना ध्वज मानकर इसको गुरु का स्थान प्रदान किया है।
हमारे राष्ट्रीय ध्वज "तिरंगा ध्वज" की कहानी
आज अपने संविधान द्वारा स्वीकृत चक्र सहित तिरंगा झंडा अपना राष्ट्रीय ध्वज के रूप में घोषित है । उसके विकास की भी एक कहानी है।
🇮🇳 हमारे देश के क्रांतिकारी जब देश के बाहर यूरोप गए तो उन्होंने वहां फ्रांस तथा इटली की क्रांति गाथाएं सुनीं। वहां के क्रांतिकारियों के पास अधिकतर झंडे तीन रंग के थे। इसलिए भारतीय क्रांतिकारियों को मैडम कामा द्वारा सुझाए गए स्वरूप के झंडे को ही अपना झंडा बनाने की इच्छा हुई।
प्रथम ध्वज- 7 अगस्त 1906 को पारसी बागान कोलकाता में जो ध्वज फहराया गया उसमें लाल, पीली, हरी पट्टी पर "वंदे मातरम" लिखा था। हरी पट्टी में बायीं ओर श्वेत रंग से सूर्य तथा दायीं ओर से श्वेत रंग से तारा बनाया गया था।
द्वितीय ध्वज- 1907 में जर्मनी के स्टुगार्ड में मैडम कामा और उनके साथ भारत से निर्वासित कुछ क्रांतिकारियों ने एक ध्वज लगाया। यह ध्वज पहले के ध्वज के समान ही था । इसकी पहली पट्टी पर एक कमल और सप्त ऋषियों की स्मृति में 7 तारें थे।
तृतीय ध्वज- 1917 में लोकमान्य तिलक तथा श्रीमती एनीबेसेंट ने होमरूल आंदोलन के समय एक ध्वज लगाया था । इस ध्वज में पांच लाल और चार हरी पट्टियाँ एक के बाद एक पड़ी हुई थी। सात तारें सप्तर्षियों की स्मृति में थे । बायें कोने के ऊपर छोटा सा यूनियन जैक भी बना था।
चौथा ध्वज- 1921 में विजयवाड़ा के कांग्रेस सम्मेलन में वहां के युवकों ने लाल और हरी पट्टी वाला झंडा गांधीजी को भेंट किया। गांधीजी ने उसमें ईसाइयों के लिए सफेद रंग और स्वावलंबन तथा स्वदेशी भाव से चरखा को भी जोड़ दिया।
पांचवाँ ध्वज- कराची कांग्रेस के समय राष्ट्र का ध्वज कैसा हो? यह तय करने के लिए एक झंडा कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी में डॉ॰ एन॰एस॰ हार्डिकर, मास्टर तारा सिंह, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, डॉ॰ पट्टाभि सीतारमैय्या, सरदार पटेल और काका कालेलकर सहित कुल 7 सदस्य थे । इस समिति ने देश भर में सभी प्रमुख लोगों तथा प्रांतीय समितियों के साथ गंभीर रूप से चर्चा करने के उपरांत अपना सुझाव दिया कि राष्ट्रध्वज एक ही रंग का अर्थात केसरिया होना चाहिए। जिसके बाएं किनारे पर कत्थई रंग का चरखा बना हो । परंतु कांग्रेस की अखिल भारतीय समिति ने इस सर्व सम्मत प्रस्ताव को मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण अस्वीकार कर तिरंगे झंडे को ही राष्ट्रीय ध्वज की स्वीकृति दी। आरंभ में इस झंडे में हरा ऊपर , सफेद बीच में तथा केसरिया रंग नीचे था । परंतु बाद में केसरिया रंग ऊपर और हरा रंग नीचे निश्चित किया गया।
22 जुलाई 1947 को भारतीय संविधान सभा ने तिरंगे ध्वज को ही स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार कर लिया। चरखे के स्थान पर अशोक की लाट पर अंकित धर्मचक्र को स्वीकृति मिली।
🇮🇳 भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को सभी भारतीयों के साथ-साथ अन्य देशवासी भी सम्मान करते हैं। इसके सम्मान एवं सुरक्षा के लिए कई स्थानों पर अनेकों भारतीयों ने अपने प्राण को उत्सर्ग कर दिये।
भारत माता की जय! वंदे मातरम!!
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